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Musafir Chalta Jaye Nirantar - Yatra Sansmaran – Khand-1
Musafir Chalta Jaye Nirantar - Yatra Sansmaran – Khand-1
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हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ है। हर क्षेत्र की अपनी एक विशेषता है, विशिष्टता है,सौन्दर्य है। हम जितना भी इसे जानने का प्रयास करेंगें, कुछ नयी बात, कुछ नए तथ्य उभरकर सामने आ जायेंगे। मुझे यात्राओं का शौक प्रारंभ से ही रहा है। यह शौक शायद मुझे मेरी पूज्य माताजी से मिला है जिन्हें घूमने में अत्यंत ही आनंद आता था। अब तो उनकी स्मृति ही शेष है पर जब वे जीवित थीं और भ्रमण हेतु शारीरिक रूप से सक्षम थीं तब तक मुझे भी उनके साथ देश के कई स्थानों पर जाने का अवसर मिला। बैंक में सेवारत होने के कारण मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मैं उन्हें विभिन्न स्थानों में ले जाऊं। इस कड़ी में चारों तीरथ धाम के दर्शन हो गए तथा पहाड़ी अंचल के चारों धाम—गंगोत्री, जमनोत्री, बद्रीनाथ एवं केदारनाथ भी जाने का सुअवसर मिला। पर उन यात्राओं का संस्मरण मैं नहीं लिख पाया। पर अब पिछली कुछ यात्राओं के संस्मरण को मैंने लिखना प्रारम्भ किया है जिसका शीर्षक मैंने रखा है – “मुसाफिर चलता जाए निरंतर” यह शीर्षक मैंने अपने एक स्वरचित गीत के मुखड़े से लिया है जो मेरे मन को भी बहुत भाता है। गीत का मुखड़ा है –जीवन है यूँ चलते जाना ,मुसाफिर चलता जाए निरंतर। मेरे यात्राओं के संस्मरण लिखने का यह सिलसिला यूँ ही निरंतर चलता रहेगा। जिसका यही शीर्षक रहेगा बस साथ में खंड/भाग बढ़ता जाएगा। मैंने अपने कुछ इन यात्रा संस्मरणों को बहुत कुछ डायरी लेखन की शैली में लिखा है जिसमे कई जगह निजी जीवन के अपने पारिवारिक रिश्तों को भी महत्व दिया गया है। मुझसे जुड़े ये रिश्तों के बंधन हमारे पारिवारिक संस्कारों को परिलक्षित तो करते ही हैं साथ ही कहीं न कहीं हर एक के जीवन के जुड़ाव को भी दर्शाते हैं। इन यात्राओं में मुझे जैसा अनुभव हुआ, वही मैंने लिख दिया। जो कुछ मैंने पाया उसे अपने शब्दों में ढाल दिया। कहीं पर अच्छा अनुभव हुआ तो कहीं पर दिल को दर्द भी मिला। कहीं पर प्रकृति की सुन्दरता मिली तो कहीं पर कोई स्थान कुछ टीस भी दे गया। इन सभी भावनाओं को लिखता चला गया। और अब यह संस्मरण एक पुस्तक के रूप में सामने है। मुझे विश्वास है इसे पठन करने पर उस स्थान की विशिष्टता का, सौन्दर्य का बोध तो होगा ही साथ में अपनेपन का आभास भी होगा। उस स्थल विशेष की संस्कृति, संस्कारों एवं परम्पराओं से भी परिचय होगा। मेरा यह यात्रा संस्मरण का सिलसिला यूँ ही निरंतर चलता रहेगा जब तक मैं लिखने में एवं यात्रा पर जाने में सक्षम हूँ तब तक ......।।
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